कंकर पे चलकर, कांटो से निपटकर, चट्टानों से बच कर, चल रहा था मै,
तूफ़ानो से लड़ कर, कठिनाइयों से छूट कर, जी रहा था मैं!
इंसानों की दुनिया में, ना जाने क्यों कोई इंसान नहीं दिखता ,
हिन्दू -मुस्लमान, सिख-इसाइयो के बिच बट सा गया हु मैं!!
क्यों न जाने लगता है , रेत से जख्मी हुआ मै!!!!
दुश्मनों से, दरिंदो से, आफतगार बाशिन्दों से, हरदम बचा हु मै,
मोहब्बत से छला गया, दोस्ती में ठगा गया, अपनों की कारगुजारी से जला हु मै!
बेगानों की क्या बात करू मै, अपनों से बेगाना हुआ मै,
ना जाने कब खुदगर्ज दुनिया की सोहबत में खुदगर्ज हुआ मै!!
क्यों न जाने लगता है , रेत से जख्मी हुआ मै!!!!
-वैभव
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